Srinivas Ramanujan: जानिये गणित के जादूगर श्रीनिवास रामानुजन के बारे में, सारा विश्व मानता है जिनका लोहा

Srinivas Ramanujan : गणित के सवाल अच्छे अक्षरों के होश उड़ा देते हैं. इनके आगे अच्छे-अच्छे धुरंधर भी नतमस्तक हो जाते हैं. लोगों की रातों की नींद तक उड़ जाती है. बाकी कोई भी विषय हो कोई भी साधारण इंसान, जिसमें थोड़ी सी समझ हो वह आसानी से कर लेता है लेकिन गणित एक ऐसा विषय है जिसे हल कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. लेकिन आज हम इस आर्टिकल में आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताएंगे जिसके लिए मैथमेटिक्स एक खिलौने की तरह ही थी.

हम भारत में बात कर रहे हैं भारत के तमिलनाडु के कोयंबटूर में जन्मे महान गणितज्ञ श्री निवास रामानुजन की. इनका जन्म 11 दिसंबर 1887 को हुआ था. कहा जाता है कि यह शरीर से काफी कमजोर थे और तपेदिक के मरीज भी थे. विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन को सदी के सबसे महान गणितज्ञ के रूप में जाना जाता है. महज 33 साल की उम्र में इनका निधन हो गया.

गरीब परिवार से संबंध रखते थे Srinivas Ramanujan

Srinivas Ramanujan काफी गरीब परिवार से संबंध रखते थे. कहा जाता है कि रामानुजन की कोहनी काली रहती थी, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास चॉक से स्लेट पर लिखे हुए गणित के सवालों को मिटाने के लिए कपड़ा भी नहीं मिल पाता था जल्दबाजी में वह कोहनी से ही स्लेट को साफ कर लेते थे.

गणित के प्रति उनका प्रेम अथाह था. इतना अधिक था कि घर कि दीवारों, दरवाजो, चबूतरे, स्कूल के ब्लैक बोर्ड समेत जो भी चीज उन्हें मिलती थी, वह गणित के सवालों को उसी पर ही हल करने लग जाते थे. सामाजिक, विज्ञान या अंग्रेजी, चाहे विषय कोई भी हो, वह सिर्फ गणित ही पढ़ते रहते थे.

Srinivas Ramanujan
Srinivas Ramanujan

रामानुजन की उम्र जब तक 3 साल थी तब तक वह बोल भी नहीं पा रहे थे. लेकिन वह अपनी प्रतिभा के धनी थे. प्राइमरी परीक्षा में उन्होंने जिले भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. गणित के प्रति उनका रुझान इतना ज्यादा था कि मात्र 13 साल की उम्र में वह त्रिकोणमति को हल कर देते थे. जब वह सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तब उन्होंने BA के छात्र को भी गणित पढ़ा दिया था.

हाई स्कूल में गणित और अंग्रेजी में उन्हें अच्छे अंक मिले जिस कारण उन्हें स्कॉलरशिप दे दी गई. लेकिन 12वीं क्लास में जब वह पहुंचे तो उन्होंने मैथ के पर बहुत ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और वे बाकी विषय में फेल हो गए.

नतीजा यह हुआ कि स्कॉलरशिप मिलनी भी अब उन्हें बंद हो चुकी थी. परिवार इतना गरीब था कि आगे पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. घर वालों ने प्राइवेट परीक्षा दिलवाई लेकिन वहां भी वह गणित को छोड़ बाकी सब्जेक्ट में फेल ही हुए.

प्रोफेसर हार्डी ने पहचान रामानुजन की प्रतिभा को

घर चलाने के लिए उन्होंने ट्यूशन करना शुरू किया तब उन्हें ₹5 महीना दिया जाता था. इसी समय उनका विवाह हुआ. अचानक से ही रामानुजन की मुलाकात कुंभकरण के डिप्टी कलेक्टर श्री वी रामास्वामी अयर से हुई.

वह भी गणित के विद्वान माने जाते थे. उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को देखते हुए पर उन्हें ₹25 महीना की स्कॉलरशिप दिलवा दी. इसी की बदौलत रामानुजन अपना पहला रिसर्च पेपर पढ़ पाए.

इसी पेपर को लंदन के कैंब्रिज के प्रोफेसर जी. एच. हार्डी ने पढ़ा था. यही उनके कैंब्रिज जाने की राह बन पाया. इन्हीं प्रोफेसर ने रामानुजन में छुपे महान गणितज्ञ को पहचान लिया था. अब रामानुजन और प्रोफेसर हड्डी के बीच पत्राचार शुरू हो चुका था.

इन्हीं के द्वारा Srinivas Ramanujan अपने गणितीय समीकरणों को हल करके भेजते थे. उन्हें पढ़कर वह प्रोफेसर हैरान रह जाते थे कि जिन गणित की समस्याओं को दुनिया के तमाम बड़े-बड़े गणितज्ञ नहीं सुलझा पाए, उन्हें बिना किसी संसाधन के एक शख्स सरलता से हल कर लेता है.

रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज जाने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनके पास पर्याप्त धन नहीं था. तब प्रोफेसर हार्डी ने उनके लिए आर्थिक सहायता और स्कॉलरशिप की व्यवस्था की. इस तरह वह कैंब्रिज पहुंच पाए.

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कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भी गाड़े Srinivas Ramanujan ने झंडे

कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भी Srinivas Ramanujan ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया. अपनी प्रतिभा के बल पर ही रामानुजन को कैंब्रिज की सबसे प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप मिल पाई थी. इस फेलोशिप के लिए भी प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. रामानुजन अब इतने पर ही नहीं रुके. उन्हें रॉयल सोसाइटी के बाद ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप भी मिल गई थी. ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय थे.

साल 1911 की बात है जब रामानुजन का प्रथम शोध पत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” रिसर्च पेपर जर्नल ऑफ इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हो पाया था. एक बार की बात है जब प्रोफेसर हार्डी ने गणितज्ञों की योग्यता के लिए 0 से 100अंक तक का एक पैमाना निर्धारित किया था.

यह ऐसी परीक्षा थी जिसमें प्रोफेसर हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए थे. उस समय के प्रसिद्ध गणितज्ञ डेविड गिल्बर्ट को 80 मिले थे. लेकिन रामानुजन को 100 में से 100 अंक दिए गए थे.

यही कारण है था कि प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का सबसे महान गणितज्ञ का कहा था. प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन दोनों ने मिलकर गणित के कई रिसर्च पेपर को पब्लिश किया था.

साल 1917 में रामानुजन को लंदन मैथमैटिकल सोसाइटी के लिए चुना गया. रामानुजन ने डाइवर्जन सीरीज पर अपना सिद्धांत पेश किया. riemannn series, the elliptic integrals, hypergeometric series और जटा फंक्शन जैसे समीकरणों पर रामानुजन ने काफी सिद्धि पाई.

रामानुजन ने दी गणित की 4000 से ज्यादा थ्योरम

रामानुजन ने अपने पूरे लाइफ टाइम में लगभग 4000 थ्योरम बनाई थी. 1918 में उन्होंने ऑप्टिकल फंक्शन्स और संख्या के सिद्धांत पर अपना रिसर्च पब्लिश किया और इसके लिए उन्हें रॉयल सोसाइटी का फैलोशिप चुना गया.

केम्ब्रिज में काम करते हुए रामानुजन ने एक और उपलब्धि अपने नाम की. रॉयल सोसाइटी के इतिहास में आज तक रामानुजन जितनी कम उम्र का कोई भी सदस्य नहीं हो पाया था.

मात्र 16 साल की उम्र में ही उन्होंने G.S.Carr. द्वारा कृत “A synopsis of elementary results in pure and applied mathematics” की 5000 से अधिक थ्योरम्स को प्रमाणित करके सिद्ध दिया था कि उनमें प्रतिभा कूट कूटकर भरी है. साल 1919 में रामानुजन भारत लौट आये.

रामानुजन की प्रतिभा देख दुनिया रह गई हैरान

धीरे-धीरे अब दुनिया भर में रामानुजन का नाम चमकने लगा था. केवल 33 साल की उम्र में ही वह दुनिया से चले तो गए, लेकिन उन्होंने अपने पीछे सैकड़ो ऐसे पन्ने छोड़ दिए, जिनमें गणित के असंभव से प्रतीत होने वाले समीकरणों को हल किया गया था. यह वही गणित के समीकरण थे जिनका इस्तेमाल अनेकों खोजो को हल करने में किया गया.

लगभग 50 सालों तक कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज की लाइब्रेरी में उनके पेपर पड़े रहे. उनके द्वारा हल की गई गणित की रहस्यमई पहेलियां वाले 130 पन्नों पर साल 1976 में पेनीसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ डॉक्टर जॉर्ज एंड्रयूज की नजर पड़ी.

इस तरह से कई सालों बाद ज़ब उन गणित की पहेलियों का खुलासा हो पाया और जब ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया रामानुजन की प्रतिभा को जानकर हैरान रह गई. गणित से जुड़ी कई पुरानी समस्याओं को भी उन्होंने चुटकियों में हल कर दिया था. 26 अप्रैल 1920 को 33 उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली.

कुंभकोणम में उनका देहांत हुआ. साल 1991 में श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी प्रकाशित हुई, जिसका नाम था “द मैन यू इन्फिनिटी” साल 2015 पर एक फ़िल्म भी इसके ऊपर रिलीज की जा चुकी है. रामानुजन ने अपने जीवनकाल में अनेक ऐसी थ्योरम दी हैं जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं है. गणित के जादूगर के रूप में श्रीनिवास रामानुजन को पहचाना जाता है.

रामानुजन महालक्ष्मी में रखते थे अटूट श्रद्धा

रामानुजन का ईश्वर में बहुत ज्यादा विश्वास था. नमक्कल की महालक्ष्मी उनकी पारिवारिक इष्टदेवी थी. खुद श्रीनिवास रामानुजन कहते थे कि उनके लिए गणितीय समीकरण का कोई महत्त्व नहीं है जो ईश्वर की धारणा का प्रतिनिधित्व नहीं करती है. उनका मानना था कि उनका गणित के प्रति ज्ञान और तमाम खोज नमक्कल की महालक्ष्मी की ही देन और कृपा है.

रामानुजन ऐसा कहते थे कि जब वह सो रहे होते थे तो उस समय महालक्ष्मी उनके साथ बैठती थीं और उन्हें गणित के समीकरणों को हल करना सिखाती थी. उन्हें सपने में भी महा लक्ष्मी का हाथ दिखता था जिसमें वह गणित से संबंधित कुछ लिखती थी.

बताया जाता है कि रामानुजन हर रोज़ महालक्ष्मी की पूजा भी करते थे. रामानुजन पिता को शादी के कई सालों बाद भी संतान नहीं हुई तो उन्होंने माँ नामगिरी के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की थी. स्वयं उनके माता पिता भी ऐसा विश्वास करते थे कि महालक्ष्मी के कारण ही रामानुजन को गणितीय पहेली को हल करने की शक्ति मिल पाई है.

रामानुजन के बारे में यह भी कहा जाता था कि जब भी उनकी रात में नींद खुलती थी तो वह उठकर गणित के सूत्र लिखने लग जाते थे और जब नींद आती थी तो फिर से सो जाते थे.

लोग आज भी मानते हैं कि गणित के सूत्र हल करने की उनकी जो शक्ति थी वह अद्भुत थी. उन्होंने गणित की कोई औपचारिक पढ़ाई पूरी नहीं की लेकिन फिर भी वह गणित के कठिन से कठिन समस्याओं को चुटकियों में हल कर देते थे.

टीवी की बीमारी के चलते बिगड़ा स्वास्थ्य

रामानुजन को टीबी की बिमारी ने घेर लिया, जिसके कारण साल 1919 में उन्हें भारत आना पड़ा. धीरे धीरे उनकी तबियत ज्यादा खराब होती रही. लेकिन इस दौरान भी उनका मैथ के प्रति प्रेम कम नहीं हो पाया था.

इस बिमारी के दौरान ही उन्होंने मॉक थीटा फंक्शन पर भी एक उच्चस्तरीय शोध पत्र लिख डाला था. समय बीतने के बाद इसका उपयोग चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने के लिए किया जाता रहा.

हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत सरकार द्वारा 26 फरवरी 2012 को इसके विषय में अधिसूचना भी जारी कर दी थी. रामानुजन के जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जब उनका निधन हुआ तो उनके उसके निधन के 26 साल बाद उनकी एक नोटबुक सामने आई, जिसमें उन्होंने कई रहस्यमय समीकरणों पर काम किया हुआ था.

आज जबकि रामानुजन का देहांत हुए काफी समय बीत चुका है, आज भी दुनिया उनकी गणित को लेकर जो समझ थी, उसका लोहा मानती है. एक भारतीय होने के नाते हमारा सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है. जब भी हम रामानुजन जैसी किसी महान विभूति के बारे में पढ़ते हैं.

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