Chaudhary Charan Singh: आखिर क्यों कहा जाता है चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा, जानिए उनके जीवन से जुड़े अनसुने किस्से

Chaudhary Charan Singh : यह किस्सा सन 1979 का है. गर्मियों के दिन थे और इटावा के ऊसराहार थाने के सिपाही अपना काम कर रहे थे. इसी बीच वहां पर एक साधारण वेशभूषा पहने एक किसान आया. माथे पर पसीना पौंछते हुए सिपाही से बोला कि साहब मेरे दो बैल चोरी हुए हैं. मुझे शिकायत लिखवानी है.

इस पर सिपाही ने कहा कि बाबा टाइम हो चुका है कल आना. निराश होकर किसान वापस लौट पड़ा. तभी भाग कर दूसरा सिपाही आया और बोला कि दरोगा आपको बुला रहे हैं. दरोगा ने भी एक दो सवाल पूछ कर किसान को वहां से बिना रिपोर्ट दर्ज करे ही भगा दिया.

किसान ने फिर उल्टे कम बड़ा लिए तब दोबारा से वही सिपाही दौड़ते हुए आया और बोला बाबा थोड़ा खर्चा पानी दे दो तो रिपोर्ट लिख लेंगे. इस पर किसान खुश हुआ. लेकिन खर्चा पानी की बात उसे अंदर से खाये जा रही थी. हालांकि वह कुछ पैसे देने पर राजी हो गया था. एक बार फिर से मामला दरोगा के पास आ चुका था.

Chaudhary Charan Singh
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हो गया पूरा थाना सस्पेंड

₹35 की रिश्वत तय हुई. मुंशी हंसते हुए किसान से बोला , ‘बाबा साइन करोगे कि अंगूठा मारोगे।’ पूरा थाना ठहाका मारकर हंस रहा था. गंदे से कपड़ों में से किसान ने पेन निकाल लिया, साइन किया तो नाम लिखा था – चौधरी चरण सिंह.

साथ ही साथ उसे कागज पर मोहर भी लगा दी थी- जिस पर लिखा था प्रधानमंत्री भारत सरकार. दरोगा समेत पूरा थाना दंग रह गया. अब पसीना माथे का पता बदल चुका था. 24 घंटे के अंदर ही पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया गया.

गरीब परिवार में Chaudhary Charan Singh का हुआ जन्म

गरीब परिवार में जन्म लेने वाले चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ के नूरपुर गांव में 23 दिसंबर, 1902 को हुआ था. खेती किसानी से ही घर का गुजारा चलता था. उनके पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था. पिता चाहते थे कि चरण सिंह जल्दी पढ़ाई लिखाई पूरी करके परिवार की जिम्मेदारी उठा ले.

Chaudhary Charan Singh की पढ़ाई सरकारी उच्च विद्यालय में हुई. साल 1923 में साइंस से ग्रेजुएशन करने के बाद 1925 में आर्ट साइड से ग्रेजुएशन किया. फिर कानून की पढ़ाई पूरी की और वकालत के लिए गाजियाबाद चले गए.

पहली बार सक्रिय राजनीति में लिया भाग

यह वह दौर था जब चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह युवाओं के आदर्श होते थे. 1929 में चरण सिंह भी उनके साथ इस लड़ाई में शामिल हो गए पहली बार 1937 में उनका नाम यूपी की राजनीति में सुनाई दिया था. कांग्रेस की तरफ से विधानसभा चुनाव लड़े और जीत गए. साल 1940 में जब वह सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुए तो उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

आखिरकार 1947 को देश आजाद हो गया. तब तकChaudhary Charan Singh को देश उनके त्याग और हिम्मत के कारण चौधरी चरण सिंह बुलाने लगा था. साल 1951 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया.

उन्हें न्याय एवं सूचना विभाग का कार्यभार दिया गया. बताया जाता है कि अंग्रेजो के जमाने से चली आ रही जिम्मेदारी प्रथा को खत्म करने का श्रेय चौधरी चरण सिंह को ही जाता है.

अब तक जिस जमीन पर जमीदारों का हक था, अब किसान उसे जमीन पर खेती करने लगे थे. उनके इससे फैसले की चारों तरफ चर्चा होने लगी और उनका कद राजनीतिक तौर पर और व्यक्तिगत तौर पर बढ़ गया था.

कांग्रेस की सरकार थी और इस समय यह विधायक पारित हुआ था. साल 1960 में कांग्रेस पार्टी जीती और चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह और कृषि विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई.

Chaudhary Charan Singh
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पंडित नेहरू से मनमुटाव के चलते छोड़ी कांग्रेस

देश में साल 1951-1967 तक वह कांग्रेस का एक बहुत बड़ा चेहरा थे. हालांकि एक समय ऐसा आया जब 1967 में पंडित नेहरू से मनमुटाव के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था. तब तक यूपी के राजनीतिक विद्वान यह समझ चुके थे कि चौधरी चरण सिंह के रुतबे में इससे फर्क पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

Chaudhary Charan Singh ने राज नारायण और राम मनोहर लोहिया के सहयोग से एक नई राजनीतिक पार्टी ‘भारतीय क्रांति दल’ का निर्माण कर दिया. उनकी यह पार्टी चुनाव जीती और 3 अप्रैल 1967 को उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया.

लेकिन इसके एक साल बाद साल 1968 में उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. 17 फरवरी 1970 को दोबारा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. केंद्र सरकार में उन्हें गृहमंत्री बनाया गया. इस दौरान उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की.

जीवन भर नहीं हारा कोई चुनाव

साल 1979 में चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की. 28 जुलाई 1979 को उन्होंने वह प्रधानमंत्री भी बने. किसान नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले चौधरी चरण सिंह के नाम एक अनोखा रिकार्ड भी है. वह यूपी के इकलौते ऐसे नेता थे जिन्होंने कभी भी कोई चुनाव नहीं हारा.

चौधरी चरण सिंह ने बागपत जिले के छपरौली गांव से विधानसभा चुनाव लड़ा था. वहां के लोग आज भी उनसे जुड़े किस्से-कहानियों को बड़े चाव से सुनते और सुनाते हैं.

इसी बारे में बात करते हुए छपरौली के रामपाल बताते हैं , “चौधरी साहब का एक बेहद चर्चित किस्सा है। प्रधानमंत्री बनने के 19 दिन बाद चौधरी साहब को लालकिले पर झंडा फहराना था। वह पहली दफा झंडा-रोहण करने गए, तो उनसे पीए ने पूछा कि सर क्या आप धोती-कुर्ता और टोपी में ही झंडा फहराने चलेंगे? इस पर चौधरी साहब ने कहा- बिल्कुल। आज पूरा देश देखेगा कि किसान-मजदूर का बेटा लाल किले पर झंडा फहराएगा।”

किसानों के हित में लिए अनेकों फैसले

गांव और किसानों के उत्थान के लिए चौधरी चरण सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. उन्होंने खाद पर सेल्स टैक्स को हटाया. लेखपाल का पद उन्होंने सृजित किया था. मंत्रियों को मिलने वाले वेतन और बाकी लाभों को उन्होंने ही कम किया था.

उन्होंने बिजली का 50% हिस्सा के गांव के लिए निर्धारित किया. गांव में पानी की व्यवस्था और बिजली की व्यवस्था को उन्होंने काफी हद तक सुधार सड़क निर्माण के काम भी उन्होंने तेजी से करवाया.

सादगी की मिसाल थे Chaudhary Charan Singh

चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा बताया जाता है. वह सादगी और ईमानदारी की मिसाल थे. उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं किया. जब भी उन्हें सत्ता मिली तो उन्होंने किसानों की भलाई के लिए ही काम किया. आज भी किसान उनके किए गए कामों के लिए उन्हें याद करते हैं.

चौधरी नरेंद्र सिंह छपरौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं वह चौधरी चरण सिंह के बातों को याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया. साल 1959 की बात है जब नागपुर का अधिवेशन था. उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू कोऑपरेटिव फार्मिंग को लागू करना चाहते थे. लेकिन चौधरी चरण सिंह को यह मंजूर नहीं था.

चौधरी चरण सिंह ने अधिवेशन के दौरान ही इसके नुकसान गिना दिए. इसे किसान विरोधी प्रस्ताव बता दिया. यही कारण था कि प्रस्ताव पास भी हो गया था, लेकिन इसके बावजूद भी पंडित नेहरू इस कानून को लागू नहीं करवा पाए.

नहीं मिलाया कभी पूंजी पतियों से हाथ

पूर्व एमएमसी जगत सिंह चौधरी चरण सिंह के बारे में याद करते हुए बताते हैं कि जब भी उन्हें सत्ता मिली तो उन्होंने किसानों के हित में काम किया. गन्ने और गेहूं के दामों में उन्होंने बढ़ोतरी की. वह किसानों के सच्चे हितैषी थे. सत्ता पर काबिज रहते उन्होंने कभी भी पूंजी पतियों से हाथ नहीं मिलाया.
वह ग्रामीणों के बीच जाकर चंदा एकत्रित करके गरीबों को चुनाव लडवा देते थे और सत्ता में भागीदार भी बना देते थे. 29 मई, 1987 को उनका निधन हो गया। चौधरी चरण सिंह के बाद उनके कामों की बागडोर उनके बेटे अजीत सिंह ने संभाली.
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1980 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 1986 में वह राज्यसभा पहुंचे. 6 बार लोकसभा के भी सदस्य रह चुके हैं और कई सरकारों में वह उद्योग और नागरिक उड्डयन सहित अनेक मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. 1996 में जनता दल से अलग होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल यानी कि आरएलडी की स्थापना की.
लेकिन कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते 6 मई 2021 को  उनका निधन हो गया. अब आरएलडी की कमान अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. वह राज्यसभा के सांसद भी हैं.

Conclusion :

Chaudhary Charan Singh ने अपनी पूरी जिंदगी किसानों और मजदूरों के हित में लगा दी. वह भले ही सत्ता में काबिज़ रहे लेकिन जीवन भर उन्होंने किसानों, मजदूरों और गरीब तबकों के लिए काम किया.

उन्होंने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया.. चाहे उन्हें भले ही सत्ता से हाथ धोना पड़ा हो. यही कारण है कि आज भी किसान और मजदूर वर्ग उन्हें अपना सच्चा हितेषी मानता है.

चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हो सभी उनके कामों को आज भी याद करते हैं. वह कभी भी किसी एक पार्टी के नेता नहीं रहे. हर पार्टी  की तरफ से उन्हें बराबर मान सम्मान ही मिला है.

 

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