पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
14 फरवरी 2019 को आखिर क्या हुआ था और इतनी सिक्योरिटी के बाद भी कैसे आतंकवादियों ने इस पुलवामा अटैक (आतंकी हमला) को अंजाम दिया?
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
के पीछे का सच
पुलवामा जिले के काकापोरा तहसील में आदिल अहमद डार नाम का एक लड़का रहता था। 19 साल का यह लड़का मार्च 2018 में अपने ट्वेल्थ स्टैंडर्ड के एग्जाम्स देने वाला था। लेकिन ठीक एक महीने पहले यानी कि फरवरी 2018 में इंडियन आर्मी के खिलाफ आदिल एक प्रोटेस्ट में हिस्सा ले रहा था। प्रोटेस्ट को रोकने के लिए पुलिस के द्वारा की गई डमी फायरिंग में आदिल के पैर में गोली लगने से वह घायल हो जाता है। इस घटना से आदिल अहमद डार के मन में इंडिया और इंडियन फौजों के खिलाफ नफरत पैदा हो जाती है। वह बदला लेने के लिए जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन को ज्वॉइन कर लेता है। यह आखिरी बार था जब आदिल को उसके मां बाप ने घर छोड़कर साइकिल पर जाते हुए देखा था। आगे बढ़ने से पहले आपके दिमाग में महत्वपूर्ण घटना स्थलों का आईडिया होना बहुत जरूरी है। इस आदिल का घर, पुलवामा में वो जगह जहाँ पुलवामा अटैक (आतंकी हमला) हुआ वहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर ही है|
पुलवामा अटैक (ब्लास्ट) यहां लेथपोरा में हुआ था।
यह है पुलवामा और लेथपो
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
एवं सीआरपीएफ की कॉन्वॉय का रूट
पुलवामा जिले में एक गांव है। पुलवामा से 250 किलोमीटर दूरी पर सीआरपीएफ का जम्मू ट्रांजिट कैंप है । इसी जगह से 14 फरवरी 2019 को सुबह सीआरपीएफ की कॉन्वॉय रवाना हुई थी। सीआरपीएफ की कॉन्वॉय इस नेशनल हाइवे फोर पर चल रही थी, जिसे भारत के उत्तरी इलाके में जम्मू-श्रीनगर हाईवे भी बोला जाता है। कॉन्वॉय को जम्मू ट्रांजिट कैंप से श्रीनगर ट्रांजिट कैंप तक पहुँचना था लेकिन श्रीनगर पहुँचने से पहले ही लगभग 30 किलोमीटर की दूरी और बची होगी कि पुलवामा में सीआरपीएफ की बस पर आतंकी हमला कर दिया गया।
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
के लिए आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद में हमलावर आदिल की ट्रेनिंग
जैश-ए-मुहम्मद हेडक्वार्टर में आदिल की एक साल तक ट्रेनिंग चलती है। एक साल यानी फरवरी दो हज़ार 18 जब आदिल ने अपना घर छोड़ा तब से फरवरी दो हज़ार 19 जब पुलवामा अटैक हुआ तब तक यह एक साल की ट्रेनिंग हुई | इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी साल में आदिल जैसे किशोरों (नौजवानों) का ब्रेनवॉश करके उनके दिमाग में एक खास बात बिठा दी जाती है। खास बात यह है कि अगर वह अपने मजहब की राह में जान देंगे, तो उन्हें जन्नत मिलेगी। सिर्फ इतना ही नहीं, जन्नत में उन्हें हमेशा अप्सरा जैसी (अत्यंत सुन्दर) दिखने वाली 72 हूरों के साथ कभी न खत्म होने वाला सुख मिलेगा। दरअसल, इस पुलवामा अटैक की असली शुरुआत यहां से होती है। एक तो आदिल के मन में इंडिया और इंडियन फौजों के खिलाफ बदले की भावना और ऊपर से बदला पूरा होने पर ऐसा इनाम। खैर, इंटेलिजेंस एजेंसी के हिसाब से यह पुलवामा अटैक नौ 2019 को होने वाला था।
9 फरवरी को किन कारणों से
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
टाला गया
क्योंकि छह साल पहले 9 फरवरी के दिन ही कुख्यात कश्मीरी आतंकवादी अफजल गुरु को भारत सरकार ने फांसी दी थी। लेकिन 9 फरवरी को दो कारणों से पुलवामा अटैक टाला गया। पहला कारण अफजल गुरु की फांसी का दिन सुरक्षा व्यवस्था बहुत सख्त कर दी गई और दूसरा कारण की जानकारी आपको इस लेख में आगे मिलेगी। अब बात करते हैं 14 फरवरी 2019 की। जिस दिन पुलवामा अटैक हुआ।
14 फरवरी को ही क्यों किया गया
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
आपको यह पता होना चाहिए कि सीआरपीएफ की बस कुछ ऐसी दिखती है और जब ऐसी ही बसेज ग्रुप में (काफिले में) एक साथ कहीं जाती हैं तो उसे कॉन्वॉय या काफिला अथवा रक्षकदल बोला जाता है।
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सीआरपीएफ कॉन्वॉय जिसमें सभी 78 बसें एक साथ क्यों
सुरक्षा कारणों की वजह से एक कॉन्वॉय में 25 से 30 बसें ही होती हैं। लेकिन पिछले दिनों भारी बर्फबारी के कारण कोई भी कॉन्वॉय मूवमेंट नहीं हुआ । मतलव कोई भी कॉन्वॉय जम्मू से श्रीनगर ही नहीं गई थी। यही वो दूसरा कारण जिसकी वजह से 9फरवरी 2019 को पुलवामा अटैक टाला गया। क्योंकि जब 9 फरवरी को कोई कॉन्वॉय मूवमेंट हुआ ही नहीं हुआ तो आतंकी हमला होता किस पर? खैर पिछले 5 दिनों में भारी बर्फबारी की वजह से 14 फरवरी 2019 को एक ही कॉन्वॉय में सीआरपीएफ की बस जम्मू से श्रीनगर जाने वाली थी। इन बसों में कुल दो हज़ार 547 जवान थे। अब 14 फरवरी 2019 को प्रातः तीन बजे (03:25 ए एम) तक रोल कॉल (अटेंडेंस जाँच) होता है। रॉल कॉल यानि की एक प्रकार की अटेंडेंस और पाँच मिनट बाद ठीक सुबह साढ़े तीन बजे (03:30 ए एम) सीआरपीएफ कॉन्वॉय जिसमें 78 बसें थी, वह जम्मू ट्रांजिट कैंप से रवाना हो जाती है।
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में कॉन्वॉय के मूवमेंट की हरपल की खबर आतंकियों को मिल रही थी
सीआरपीएफ कॉन्वॉय जिसमें 78 बसें थी, रवाना होते ही स्लीपर सेल के द्वारा पाकिस्तान में आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के हेडक्वार्टर में खबर पहुंचाई जाती है। फिर वहां से पुलवामा में स्थित जैश ए मोहम्मद के ऑफिस में अटैक कैसे और कब करना है, इसकी ब्रीफिंग दी जाती है। अब आदिल अहमद डार अपनी तैयारी में जुट जाता है। एक एसयूवी गाड़ी में 200 किलो से ज्यादा आरडीएक्स और अमोनियम नाइट्रेट जैसा घातक और जानलेवा एक्सप्लोसिव लोड करना शुरू कर देता है। यह एक्सप्लोसिव पिछले छह महीनों में थोड़ा थोड़ा करके पाकिस्तान से पुलवामा में लाया गया होता है। इसका मतलब है कि पुलवामा में हमले की तैयारी। जैश-ए-मुहम्मद( या मसूद अजहर) ने छह महीने पहले ही यानी की सितंबर में ही कर ली थी। अब लगभग तीन घंटे बाद कॉन्वॉय जम्मू से उधमपुर पहुंचती है। उसके तीन घंटे बाद रामबन जिले में, उसके तीन घंटे बाद कुलगाम में, उसके दो घंटे बाद अनंतनाग पहुंचती है और उसके एक घंटे बाद पुलवामा पहुंचती है। इस तरीके से दोपहर 03:27 बजे पर कॉन्वॉय पुलवामा के बॉर्डर में इंटर (प्रवेश) कर जाती है। प्रवेश करते ही आदिल अहमद डार भी अपनी जगह छोड़ देता है और आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए निकल पड़ता है। पूरे 10 मिनट बाद यानी की दोपहर 03:37 बजे पर इसरातू मोड़ से आदिल अपनी गाड़ी हाईवे पर चढ़ा लेता है और इस कॉन्वॉय की पांचवीं सीआरपीएफ बस के साथ टक्कर करते ही रिमोट कंट्रोल से अपनी गाड़ी में लदे एक्सप्लोसिव (विस्फोटक) को ब्लास्ट कर देता है। सीआरपीएफ में कुल 29 बटालियन हैं और इस बस में सीआरपीएफ की सिक्स्थ (छठी) बटालियन के पैराट्रूपर्स (जवान) मौजूद थे जोकि ब्लास्ट की वजह से ऑन द स्पॉट शहीद हो गए। साथ ही इस बस के पास आर ओ पी यानी कि रोड ओपनिंग पार्टी का एक जवान भी मौजूद था। वह भी ऑन द स्पॉट शहीद हो गया। धमाका इतना जोरदार था कि आस
कितना भयानक था
पुलवामा अटैक (आतंकी हमला): Pulwama Attack
इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि पास के घरों की खिड़कियों के शीशे भी टूट गए थे। धमाके के बाद बाकी टेररिस्ट (आतंकियों) ने फायरिंग भी की और भाग गए। कुल मिलाकर सीआरपीएफ के 70 जवान तो घायल हुए जो कि चौथी और छठवीं बस में थे और 40 सीआरपीएफ के जवान जो अपनी छुट्टी पूरी करके जम्मू ट्रांजिट कैंप से श्रीनगर ट्रांजिट कैंप में देश की सेवा करने जा रहे थे, वह शहीद हो गए।
जब ब्लास्ट के बाद सीआरपीएफ की बस की हालत ऐसी से ऐसी नहीं बल्कि ऐसी हो गई हो तो आप अंदाजा लगाओ कि जिन कॉफिन को हम शत शत नमन कर रहे थे उनमें क्या ही होगा।
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होने का सबसे बड़ा कारण
इस दुखद घटना की सबसे पहली गलती ध्यान से समझिए। दो हज़ार तीन से पहले यह नियम था कि जब भी इंडियन सिक्युरिटी फोर्सेज की कॉन्वॉय रवाना होगी तब रोड्स ब्लॉक कर दी जाएंगी। लेकिन दो हज़ार 3 में कुछ स्थानीय (लोकल) लोगों ने विरोध किया कि इससे स्थानीय जनता को परेशानी होती है। इसलिए यह नियम नहीं होना चाहिए और दो हज़ार तीन के बाद स्थानीय जनता को कॉन्वॉय के साथ चलने और सीआरपीएफ की बसों के बीच में अपनी गाड़ी ले जाने की परमिशन दे दी गई। अब इस दुखद घटना की दूसरी गलती को ध्यान से समझिए। जब भी कॉन्वॉय मूवमेंट होता है तो वह एसओपी यानी की स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के थ्रू होता है, जिसे ओ पी यानी यानी की रोड ओपनिंग पार्टी कंट्रोल करती है। रोड ओपनिंग पार्टी का काम होता है जहां से कॉन्वॉय गुजरने वाली है, उसके आसपास की लोकेशन को अच्छे से स्कैन करना, आईईडी और विस्फोटकों के जोखिम के लिए सम्बंधित जगहों की ठीक से जांच करना और उसके बाद सब कुछ सही होने पर ही कॉन्वॉय को ग्रीन सिग्नल देना। कहीं ना कहीं सिक्योरिटी (सुरक्षा) एजेंसी की लापरवाही भी रही जो सीआरपीएफ के इतने बड़े काफिले के पास तक 200 किलोग्राम विस्फोटक पहुंचाया जा सका। अब तीसरी और सबसे बड़ी गलती आदिल अहमद डार की अपने आपसे सिर्फ एक सवाल पूछ लेता कि अगर सुसाइड बॉम्बर बनकर जान देने से जन्नत और 72 हूरें मिलती हैं तो ये मसूद अजहर खुद ही जन्नत क्यों नहीं चले जाता?
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निष्कर्ष
इस आर्टिकल को अपना बहुमूल्य समय निकालकर पूरा पढने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद |
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